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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम,

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By Rihan Khan

 

 

2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को संवैधानिक ठहराते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 22 मार्च के फैसले को खारिज कर दिया है। इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा के तहत शिक्षा प्राप्त कर रहे लाखों छात्रों को राहत मिली है, जिन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद नियमित स्कूलों में दाखिले का निर्देश दिया गया था।

हाईकोर्ट ने मदरसा शिक्षा को ठहराया था असंवैधानिक

मार्च 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था। कोर्ट ने कहा था कि धार्मिक शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत एक साथ नहीं चल सकते। इसके साथ ही, सरकार को निर्देश दिया गया था कि मदरसा छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला दिलवाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा शिक्षा को गलत तरीके से संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ माना। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा शिक्षा का उद्देश्य धार्मिक और आधुनिक शिक्षा को संतुलित रूप में प्रदान करना है, और यह संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ सामंजस्य रखता है।

मदरसा शिक्षा की गुणवत्ता पर भी दी राय

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि फाजिल और कामिल डिग्रियों की वैधता यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) के मानकों के खिलाफ है। कोर्ट ने मदरसा शिक्षा में सुधार और गुणवत्ता वृद्धि पर जोर देते हुए कहा कि बेहतर शिक्षा छात्रों के उज्जवल भविष्य के लिए आवश्यक है।

उत्तर प्रदेश सरकार के लिए

इस फैसले से उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ी राहत मिली है। अब राज्य सरकार मदरसा शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और बेहतर बनाने के लिए नए कदम उठा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्य सरकार को यह मौका दिया है कि वह मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा दे, ताकि छात्र आधुनिक समाज में अपनी पहचान बना सकें।

राष्ट्रीय हित में मदरसा शिक्षा सुधार आवश्यक

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मदरसा शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ धार्मिक शिक्षा देना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि छात्रों को समग्र विकास मिले। न्यायालय ने कहा कि मदरसों को नियमित करने का कदम राष्ट्रीय हित में लिया गया है, जिससे छात्रों को बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर किया जा सके।

फैसले का असर: 17 लाख से अधिक छात्रों को राहत

इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में 17 लाख से अधिक मदरसा छात्रों को राहत मिली है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद उन पर नियमित स्कूलों में दाखिले का दबाव था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद उन्हें मदरसों में ही शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिल गया है।

निष्कर्ष सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मदरसा शिक्षा के संवैधानिक अधिकारों की पुष्टि करता है। अब उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

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