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हल्द्वानी के फ़हीम अंसारी ने पेश की मिसाल

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By Rihan Khan

 

 

सादा और शरीयत के मुताबिक निकाह:

हल्द्वानी:आज के दौर में जहां शादी-विवाह भव्य समारोह, दहेज की परंपरा, और खर्चीले रीति-रिवाजों का प्रतीक बन चुके हैं, हल्द्वानी के फ़हीम अंसारी ने एक ऐसा निकाह कर समाज में नई मिसाल पेश की है। उन्होंने सादगी और शरीयत के अनुसार सुन्नत-ए-रसूल के तरीके से शादी कर यह साबित किया कि निकाह को बिना किसी फिजूल खर्ची के भी आसान और पवित्र तरीके से अंजाम दिया जा सकता है।

सादा निकाह की अनोखी पहल

हल्द्वानी के लाइन नंबर 8 निवासी फ़हीम अंसारी, जो श्री जफर हुसैन ठेकेदार के पुत्र हैं, ने अपनी शादी में बारातियों का लश्कर या दहेज की किसी भी परंपरा को शामिल नहीं किया। उन्होंने ग्राम मलसी, रुद्रपुर निवासी मुहम्मद युनुस की पुत्री हसीन बानो से शरीयत और सुन्नत-ए-रसूल के अनुसार सादगीपूर्ण तरीके से निकाह किया। इस निकाह को शहर क़ाज़ी अल्लामा आज़म कादरी ने संपन्न किया।

शहर क़ाज़ी ने किया जागरूक

निकाह की प्रक्रिया से पहले शहर क़ाज़ी अल्लामा आज़म कादरी, जो जामा मस्जिद हल्द्वानी के इमाम भी हैं, ने एक तकरीर की। उन्होंने निकाह को आसान बनाने और दहेज जैसी गैर-इस्लामी परंपराओं का विरोध करने पर जोर दिया। उन्होंने इस्लाम में निकाह की सरलता को समझाते हुए युवाओं और परिवारों को इन फिजूल रस्मों से दूर रहने की सलाह दी।

परंपराओं का विरोध, समाज में बदलाव की उम्मीद

फ़हीम अंसारी के बड़े भाई जहीर अंसारी ने बताया कि इस सादगीपूर्ण शादी के कारण परंपरावादी लोग विरोध भी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दहेज और अन्य खर्चीली परंपराओं के कारण कई गरीब घरों की बेटियां शादी के बिना ही अपने घरों में बैठी हैं। ऐसे में यह पहल समाज को सकारात्मक दिशा में ले जा सकती है।

दहेज प्रथा का विरोध, इस्लामी शिक्षाओं का पालन

फ़हीम अंसारी के भाई फरीद ए रिज़वी ने दहेज प्रथा को भारतीय उपमहाद्वीप की सामाजिक कुरीति बताया। उन्होंने कहा कि इस्लाम में दहेज जैसी कोई परंपरा नहीं है, और यह रसूल अल्लाह या ख़ुल्फ़ा राशिदीन के दौर में कभी नहीं देखी गई। दहेज का विरोध कर निकाह को आसान और सादगीपूर्ण बनाने की आवश्यकता पर उन्होंने जोर दिया।

सुन्नत-ए-रसूल के मुताबिक वलीमा: मदरसे के छात्रों और जरूरतमंदों को प्राथमिकता

फ़हीम अंसारी के निकाह के बाद वलीमा भी पूरी तरह सुन्नत-ए-रसूल के मुताबिक आयोजित किया गया। इस दौरान परंपरागत न्यौता देने की प्रथा को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। वलीमा में विशेष रूप से मदरसों के तालिब-ए-इल्म (छात्र) और जरूरतमंद लोगों को आमंत्रित किया गया, जिससे इस आयोजन की सादगी और इस्लामिक परंपराओं का अनुपालन सुनिश्चित हुआ।

समाज में मिल रही सराहना

फ़हीम अंसारी के इस सादगीपूर्ण निकाह को समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा सराहा जा रहा है। लोग इसे अन्य युवाओं और परिवारों के लिए एक प्रेरणा मान रहे हैं। इस पहल ने यह संदेश दिया है कि अगर समाज सादगी और शरीयत के अनुसार चले, तो न केवल आर्थिक बोझ कम होगा, बल्कि निकाह जैसी पवित्र प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी।

फ़हीम अंसारी का यह कदम समाज में व्याप्त दहेज और फिजूलखर्ची जैसी कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि इस्लामिक मूल्यों और परंपराओं के सही पालन का भी संदेश देती है।

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