कुमाऊँ की पारंपरिक कला को संवारने में जुटी पहाड़ की बहु आकांक्षा

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By Rihan Khan

संस्कृति को संवारने में जुटा युवा वर्ग

उत्तराखण्ड का युवा वर्ग संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगातार प्रयासरत है। लोकसंगीत से लेकर परंपरागत कला तक, हर क्षेत्र में नई पीढ़ी अपनी जड़ों को सहेजने का कार्य कर रही है।


पहाड़ की बेटियों की नई उड़ान

आज देवभूमि की बेटियां सेना, खेल, बॉलीवुड समेत हर क्षेत्र में पहचान बना रही हैं। इन्हीं में से एक नाम है मुक्तेश्वर (प्यूड़ा) की आकांक्षा बिष्ट, जिन्होंने कुमाऊँ की परंपरागत ऐपण कला को नया जीवन दिया है।


ऐपण कला से नई पहचान

आकांक्षा पिछले दो वर्षों से इस पारंपरिक कला का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। वर्तमान में वह हल्द्वानी से पढ़ाई के साथ-साथ ऐपण कला पर काम कर रही हैं। उनका कहना है कि ऐपण पहाड़ की संस्कृति का अहम हिस्सा है, जो लगभग हर घर में देखा जा सकता है।


कला को बना रही हैं रोजगार का माध्यम

आकांक्षा सिर्फ इस कला को सीख ही नहीं रही हैं बल्कि युवाओं और महिलाओं को भी प्रशिक्षित कर रही हैं। वह ऐपण डिज़ाइनों को नेमप्लेट्स, दीये, कोस्टर्स, पूजा थाल जैसी चीज़ों पर उकेर कर इन्हें आधुनिक रूप दे रही हैं, ताकि लोग इन्हें पसंद करें और रोजगार भी जुड़ सके।


युवाओं के लिए बड़ा संदेश

आकांक्षा का कहना है कि पहाड़ से पलायन और संयुक्त परिवारों के टूटने से यह कला धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। कई युवा तो ‘ऐपण’ शब्द से भी अनजान हैं। अगर इसे अब नहीं सहेजा गया तो आने वाली पीढ़ियां इस धरोहर से वंचित रह जाएंगी।


विरासत बचाने का संकल्प

कुमाऊँ की इस शानदार विरासत और धार्मिक महत्व से जुड़ी कला को पुनर्जीवित करने का बीड़ा आकांक्षा बिष्ट ने उठाया है। उनका प्रयास है कि आने वाली पीढ़ी इस धरोहर को पहचान सके और गर्व से आगे बढ़ाए।


संपर्क करें

यदि आपको आकांक्षा के बनाए ऐपण पसंद आए तो आप उनसे मेल एवं इंस्टाग्राम के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं:
📩 Mail: akankshakaira091@gmail.com
📷 Instagram: akanksha_artgallery1998

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