क्रिकेट के मैदान पर जुड़ता है दिलों का रिश्ता
दुबई क्रिकेट स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच खेले जा रहे मुकाबले ने दोनों देशों के बीच की सरहदें मिटा दी हैं। 30 हजार दर्शकों से भरा यह स्टेडियम दो रंगों—नीला और हरा—में सजा हुआ है। कोई भारतीय झंडा लहरा रहा है, तो कोई पाकिस्तानी झंडे के साथ अपनी टीम को सपोर्ट कर रहा है।
क्रिकेट बना शांति का दूत
मैदान के भीतर भले ही खिलाड़ियों के बीच कड़ी टक्कर हो, लेकिन स्टेडियम में बैठे प्रशंसकों के चेहरे पर एक समान उत्साह दिखता है। कोई विभाजन रेखा नहीं, कोई भेदभाव नहीं—सिर्फ खेल के प्रति प्रेम और जुनून। भारत-पाकिस्तान के लोग कंधे से कंधा मिलाकर बैठे हैं, हंसी-मजाक कर रहे हैं और खेल का आनंद ले रहे हैं।
मैच के बाद सब अपने-अपने घर लौट जाते हैं
आठ घंटे तक दोनों देशों के समर्थक अपनी-अपनी टीम के लिए चीयर करते हैं, लेकिन खेल खत्म होते ही सब शांति से अपने घर लौट जाते हैं। न कोई नफरत, न कोई टकराव—सिर्फ खेल की भावना।
सांप्रदायिकता और हिंसा कहां होती है?
इस नज़ारे को देखकर यह सवाल उठता है कि अगर क्रिकेट स्टेडियम में कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं होता, तो समाज में ऐसा क्यों होता है? असल में, नफरत और सांप्रदायिकता बिना कारण नहीं पनपती—यह अक्सर राजनीतिक और सामाजिक ताकतों के जरिए बढ़ाई जाती है। जब लोग खेल की भावना को अपनाकर एक-दूसरे के साथ बैठ सकते हैं, तो समाज में भी प्रेम और भाईचारा कायम किया जा सकता है।
खेल से सीखें आपसी भाईचारा
क्रिकेट हमें सिखाता है कि प्रतिस्पर्धा जरूरी है, लेकिन दुश्मनी नहीं। भारत और पाकिस्तान के लोग एक-दूसरे के साथ बैठकर क्रिकेट देख सकते हैं, तो क्या वे एक-दूसरे के साथ मिलकर अमन और शांति से नहीं रह सकते?
नफरत नहीं, दोस्ती का पैगाम दें
दुबई क्रिकेट स्टेडियम का यह दृश्य एक बड़ी सीख देता है—खेल के मैदान में कोई धर्म खतरे में नहीं पड़ता, तो फिर समाज में यह सवाल क्यों उठता है? यह हम सभी के लिए एक संदेश है कि खेल की भावना को अपनाएं, नफरत को नहीं। जब तक हम एक-दूसरे को दुश्मन मानते रहेंगे, तब तक शांति नहीं आएगी। लेकिन अगर हम खेल की तरह जीवन में भी प्रेम और भाईचारे की भावना अपनाएं, तो दोनों देशों के बीच की दीवारें भी गिर सकती हैं।
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