छह राज्यों से जवाब तलब किया
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति में नियमों और वरिष्ठता को दरकिनार कर एडहॉक व्यवस्था अपनाए जाने पर चिंता जताई है। इस मुद्दे पर दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केंद्र शासित प्रदेश नई दिल्ली से छह हफ्तों के भीतर जवाब तलब किया है।
याचिका में क्या है आरोप?
याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की अनदेखी करते हुए कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किए जा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए निर्देशों के बावजूद राज्यों में नियमों का पालन नहीं हो रहा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह न केवल वरिष्ठ अधिकारियों के अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि इससे पुलिस व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और केंद्र सरकार के साथ-साथ उन छह राज्यों से जवाब मांगा है जहां एडहॉकिज़्म के तहत डीजीपी की नियुक्तियां की गई हैं। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्यों से कहा है कि वे यह स्पष्ट करें कि आखिर क्यों आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता और योग्यता को दरकिनार कर कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किए जा रहे हैं।
उत्तराखंड में ताजा घटनाक्रम
इस पूरे मामले में उत्तराखंड पर भी विशेष ध्यान दिया गया है, क्योंकि राज्य में डीजीपी की नियमित नियुक्ति के लिए हाल ही में महत्वपूर्ण बैठकें हुई हैं। उत्तराखंड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से एक दिन पहले ही यूपीएससी में बैठक करा ली थी, जिसमें डीजीपी पद के लिए तीन नामों का पैनल तैयार किया गया है। यह पैनल राज्य सरकार को सौंपा गया है और उम्मीद की जा रही है कि अगले कुछ ही दिनों में उत्तराखंड को एक नियमित डीजीपी मिल जाएगा।
डीजीपी की नियुक्ति में यूपीएससी का रोल
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के निर्देशों में कहा था कि डीजीपी की नियुक्ति यूपीएससी की सिफारिशों के आधार पर ही होनी चाहिए। यूपीएससी राज्य सरकारों के साथ मिलकर डीजीपी पद के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नामों का पैनल तैयार करती है। राज्य सरकार को इस पैनल में से एक अधिकारी को डीजीपी के रूप में नियुक्त करना होता है। लेकिन याचिका में कहा गया है कि कई राज्यों में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है और इसके बजाय कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति की जा रही है।
राज्यों का पक्ष
हालांकि, जिन राज्यों से जवाब मांगा गया है, उन्होंने अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। माना जा रहा है कि राज्य सरकारें कोर्ट में अपनी सफाई देंगी और बताएंगी कि किन परिस्थितियों में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति की गई थी। कुछ राज्यों का कहना है कि नियमित डीजीपी की नियुक्ति में प्रक्रिया का समय लगने के कारण अस्थायी व्यवस्था के तहत कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का महत्व
यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि डीजीपी की नियुक्ति राज्य पुलिस व्यवस्था के संचालन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों के तहत जो निर्देश दिए थे, उनका उद्देश्य यह था कि राज्यों में एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत डीजीपी की नियुक्ति हो और पुलिस बल में पेशेवरता बनी रहे।सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद अगर राज्यों में नियमों का उल्लंघन हो रहा है, तो यह न केवल पुलिस सुधारों की दिशा में एक बाधा है बल्कि इससे राज्य पुलिस की कार्यक्षमता और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं।
आने वाले समय में क्या होगा?
अब सभी की निगाहें उन छह राज्यों पर हैं, जिनसे सुप्रीम कोर्ट ने जवाब मांगा है। इन राज्यों को अगले छह हफ्तों में यह स्पष्ट करना होगा कि आखिर किन परिस्थितियों में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति की गई थी और क्यों नियमित डीजीपी की नियुक्ति नहीं हो सकी। यह भी देखा जाएगा कि राज्य सरकारें किस प्रकार से यूपीएससी के निर्देशों का पालन कर रही हैं।उत्तराखंड के मामले में उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही राज्य को एक नियमित डीजीपी मिल जाएगा, जिससे वहां की पुलिस व्यवस्था में स्थायित्व आएगा। वहीं, अन्य राज्यों के जवाब के आधार पर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे की कार्रवाई करेगी।
निष्कर्ष
डीजीपी की नियुक्ति में एडहॉकिज़्म का मुद्दा पुलिस व्यवस्था की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से उम्मीद की जा रही है कि राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार होगा और पुलिस व्यवस्था को पेशेवर और सक्षम नेतृत्व मिलेगा। अब देखना होगा कि राज्यों की ओर से क्या जवाब आता है और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या दिशा-निर्देश जारी करता है।
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