
बेतालघाट गोलीकांड के बाद निलंबन पर उठे सवाल
उत्तराखंड पुलिस के कड़े और ईमानदार अधिकारियों में गिने जाने वाले इंस्पेक्टर एवं बेतालघाट थाना प्रभारी अनीस अहमद इन दिनों सुर्खियों में हैं। हाल ही में बेतालघाट में हुए गोलीकांड की घटना के बाद सीओ प्रमोद शाह के साथ-साथ इंस्पेक्टर अनीस अहमद को भी तत्काल निलंबित कर दिया गया। सवाल यह उठ रहा है कि क्या बिना जांच पूरी किए इस तरह की जल्दबाजी में लिया गया निर्णय न्यायसंगत है?
हल्द्वानी और नैनीताल की घटनाओं से तुलना
गौर करने वाली बात यह है कि हल्द्वानी जैसे बड़े शहर में हाल के महीनों में कई बड़ी घटनाएँ सामने आईं—चाहे वो रेलवे बाजार में अवैध कब्ज़ों को लेकर हुए विवाद हों या सांप्रदायिक तनाव की घटनाएँ, लेकिन वहाँ जिम्मेदार अफसरों पर इतनी कठोर कार्रवाई देखने को नहीं मिली। वहीं, बेतालघाट जैसे छोटे क्षेत्र में तैनात एक ईमानदार अफसर को तुरंत सस्पेंड कर दिया गया। इससे पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
कम संसाधनों में पुलिस की चुनौती
जानकार बताते हैं कि उत्तराखंड पुलिस बल पहले से ही 30 से 40 प्रतिशत कम संख्याबल के साथ काम कर रहा है। इसके बावजूद सीमित संसाधनों में अपराध नियंत्रण और कानून-व्यवस्था बनाए रखना आसान नहीं होता। बेतालघाट जैसे दूरदराज़ क्षेत्रों में तो हालात और भी कठिन हैं, जहां पुलिस कर्मियों की संख्या बेहद कम है। ऐसे में क्या अफसरों पर इस तरह का दबाव उचित है?
रामनगर में तोड़ चुके थे जुआ-नशा माफिया की कमर
रामनगर में तैनाती के दौरान इंस्पेक्टर अनीस अहमद ने जुआ और नशा बेचने वाले माफियाओं पर जबरदस्त कार्रवाई की थी। उनका नाम अपराधियों के बीच खौफ का पर्याय बन चुका था। कई गैंग्स की कमर उनके सख्त रवैये के कारण टूट गई थी। यही वजह है कि उनके समर्थक और आम लोग आज सवाल उठा रहे हैं कि कहीं ये निलंबन अपराधियों के लिए राहत का कारण तो नहीं बन गया?
पूर्व घटनाओं से सबक क्यों नहीं?
उत्तराखंड में इससे पहले भी कई घटनाओं ने पुलिस की छवि और कार्रवाई पर सवाल खड़े किए। चाहे लालकुआं गोलीकांड, हल्द्वानी दंगे, या किच्छा में चुनावी रंजिश में हत्या का मामला—हर बार सवाल उठे कि क्या जिम्मेदार अफसरों पर समान पैमाने से कार्रवाई होती है? या फिर सिर्फ छोटे इलाकों के पुलिसकर्मियों को बलि का बकरा बना दिया जाता है?
ईमानदार अफसरों का मनोबल गिराने वाला कदम?
लोगों का कहना है कि इंस्पेक्टर अनीस अहमद जैसे अधिकारी, जो अपराधियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करने के लिए जाने जाते हैं, अगर इस तरह से बिना जांच निलंबित किए जाते रहेंगे, तो इससे पुलिस बल में ईमानदारी से काम करने वालों का मनोबल टूटेगा।
बड़ा सवाल – इनसाफ या अन्याय?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या अनीस अहमद का निलंबन न्याय की दिशा में सही कदम है या फिर यह एक ईमानदार अधिकारी को सिस्टम के दबाव में बलि का बकरा बनाने जैसा है? इस सवाल का जवाब आने वाली जांच ही देगी, लेकिन फिलहाल इस फैसले ने उत्तराखंड पुलिस की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
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