कुमाऊं प्रीमियर लीग में अव्यवस्थाओं का आलम,

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By Rihan Khan

न स्कोरबोर्ड न सही समय – क्या यह टूर्नामेंट मज़ाक बन चुका है?

नियमों की अनदेखी या कुप्रबंधन?

कुमाऊं प्रीमियर लीग (KPL) में जहां 70 मिनट का फुटबॉल मैच करवाकर आयोजकों ने खेल के नियमों को ताक पर रख दिया, वहीं अब एक और बड़ी लापरवाही सामने आई है—मैदान में स्कोरबोर्ड तक मौजूद नहीं! स्कोरबोर्ड के बिना दर्शकों और खिलाड़ियों के लिए स्कोर और मैच की स्थिति को समझना मुश्किल हो रहा है। आखिर यह टूर्नामेंट खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों के साथ मज़ाक क्यों कर रहा है?

खेल प्रेमियों को ठगा गया?

दर्शकों को 90 मिनट का रोमांचक मुकाबला देखने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें कम समय का मैच दिया जा रहा है।

फुटबॉल के भविष्य के लिए खतरा

अगर स्थानीय टूर्नामेंट नियमों में इस तरह मनमानी करने लगें तो क्या कुमाऊं का फुटबॉल आगे बढ़ पाएगा?क्या यह सिर्फ एक शौकिया टूर्नामेंट बनकर रह जाएगा और खिलाड़ियों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा?

खेल प्रशासन पर सवाल

क्या कुमाऊं प्रीमियर लीग को ठीक से संचालित नहीं किया जा रहा?क्या आयोजकों ने खिलाड़ियों और कोचों से सलाह लिए बिना यह बदलाव किया?

बिना स्कोरबोर्ड के टूर्नामेंट कैसे संचालित हो रहा?

हर फुटबॉल टूर्नामेंट में स्कोरबोर्ड की एक अहम भूमिका होती है, जिससे दर्शक और खिलाड़ी दोनों स्कोर और समय की जानकारी आसानी से देख सकें। लेकिन KPL में यह बुनियादी व्यवस्था तक नहीं की गई। क्या आयोजक इतने लापरवाह हैं कि वे एक साधारण स्कोरबोर्ड तक नहीं लगा सके? यह सवाल फुटबॉल प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।

खिलाड़ियों को हो रही दिक्कतें

मैच के दौरान खिलाड़ियों को स्कोर और बचा हुआ समय देखने के लिए रेफरी या मैदान के बाहर बैठे लोगों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इससे खेल में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है और रणनीति बनाने में दिक्कत आ रही है। कुछ खिलाड़ियों ने गोपनीय रूप से बताया कि KPL में अव्यवस्था और अनदेखी के कारण वे टूर्नामेंट के स्तर से निराश हैं।

दर्शकों को ठगा गया?

KPL देखने पहुंचे दर्शक भी इस अव्यवस्था से नाराज हैं। स्कोरबोर्ड न होने के कारण उन्हें हर समय स्कोर और बाकी समय जानने के लिए इधर-उधर पूछना पड़ रहा है। यह पूरी तरह से आयोजकों की नाकामी दर्शाता है। क्या यह टूर्नामेंट सिर्फ नाम का प्रीमियर लीग है, जहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दी जा रही हैं?

क्या यह प्रीमियर लीग सिर्फ नाम का है?

इन सब समस्याओं को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या KPL सिर्फ एक खानापूर्ति के लिए करवाया जा रहा है? क्या आयोजकों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया? अगर ऐसा ही चलता रहा, तो यह टूर्नामेंट खिलाड़ियों और दर्शकों के लिए मज़ाक बनकर रह जाएगा।

आयोजकों को देना होगा जवाब

अब सवाल यह है कि KPL के आयोजक कब तक इन अनियमितताओं पर चुप्पी साधे रहेंगे? क्या वे स्कोरबोर्ड की व्यवस्था करेंगे? क्या आधिकारिक फुटबॉल नियमों को लागू किया जाएगा? दर्शक और खिलाड़ी दोनों इस पर जवाब चाहते हैं, लेकिन क्या आयोजकों के पास कोई ठोस जवाब है या यह टूर्नामेंट अव्यवस्था के दलदल में ही फंसा रहेगा?

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