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By Rihan Khan

मेरठ से सपा विधायक रफीक अंसारी को कोर्ट ने 1995 के एक मामले में जेल भेजा है

मेरठ से समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक रफीक अंसारी को 1995 के एक पुराने मामले में कोर्ट ने जेल भेज दिया है। यह मामला 12 सितंबर 1995 को मेरठ के नौचंदी थाने में दर्ज हुआ था, जिसमें रफीक अंसारी और अन्य 35-40 लोगों पर बलवा, तोड़फोड़ और आगजनी के आरोप लगाए गए थे। इस घटना के बाद पुलिस ने 22 अक्टूबर 1995 को 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था, जबकि रफीक अंसारी के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट 22 जून 1996 को दाखिल की गई थी

रफीक अंसारी पर आरोप था कि उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर सड़क जाम किया था, जिसके कारण इलाके में काफी हंगामा और आगजनी हुई थी। इस मामले में कई बार उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किए गए थे, लेकिन अंसारी कभी भी कोर्ट में पेश नहीं हुए। 18 दिसंबर 1997 को उनके खिलाफ पहला गैर-जमानती वारंट जारी हुआ था, जिसके बाद से अब तक उनके खिलाफ 101 वारंट जारी हो चुके हैं

कोर्ट ने यह भी कहा कि सह-अभियुक्तों के बरी होने के बावजूद रफीक अंसारी ने कोई वैधानिक उपचार प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया और अब 26 साल बाद याचिका दाखिल की है। कोर्ट ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्हें बाराबंकी से गिरफ्तार कर मेरठ लाया गया, जहां उन्हें जेल भेज दिया

इस मामले में रफीक अंसारी का तर्क था कि अन्य 22 आरोपियों को बरी कर दिया गया है, इसलिए उनके खिलाफ भी मामला खत्म किया जाना चाहिए। लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सह-अभियुक्तों के बरी होने का आधार उनके मामले को खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं है, और उन्होंने अदालत के समक्ष पेश होने से बचने के लिए कई बार गैर-जमानती वारंटों को अनदेखा किया है

रफीक अंसारी का यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। सपा के नेता इस घटना को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे कानून का पालन करने की दृष्टि से सही कदम बता रहा है। इस मामले ने एक बार फिर से कानून और राजनीति के बीच के जटिल संबंधों को उजागर किया है।इस पूरे घटनाक्रम ने रफीक अंसारी की राजनीतिक स्थिति को मुश्किल में डाल दिया है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का सपा और उनकी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।

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